श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.7.10 
 
 
सुरासुरेन्द्रैर्भुजवीर्यवेपितं
परिभ्रमन्तं गिरिमङ्ग पृष्ठत: ।
बिभ्रत् तदावर्तनमादिकच्छपो
मेनेऽङ्गकण्डूयनमप्रमेय: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा! जब देवता व असुरों ने अपनी बाहों के बल से अनोखे कछुवे की पीठ पर रखे हुए मंदराचल पर्वत को घुमाया, तब कछुवे ने पर्वत के इस घूमने को अपनी खुजली दूर करने का तरीका समझ लिया, और उसे इससे बहुत आनंद आया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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