यं पश्यति न पश्यन्तं चक्षुर्यस्य न रिष्यति ।
तं भूतनिलयं देवं सुपर्णमुपधावत ॥ ११ ॥
अनुवाद
यद्यपि परमात्मा संसार के कर्मों को सदा देखते हैं, परन्तु कोई उन्हें नहीं देख पाता। फिर भी यह नहीं सोचना चाहिए कि जब कोई उन्हें नहीं देख पाता, तो वह भी सबको नहीं देखते। उनकी दृष्टि कभी क्षीण नहीं होती। अत: हर प्राणी को परमात्मा की आराधना करनी चाहिए, जो मित्र रूप से जीव के साथ सदैव रहते हैं।