श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  7.15.52 
 
 
निषेकादिश्मशानान्तै: संस्कारै: संस्कृतो द्विज: ।
इन्द्रियेषु क्रियायज्ञान् ज्ञानदीपेषु जुह्वति ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  गर्भाधान संस्कार के द्वारा माता-पिता की अनुकम्पा से द्विज (दो बार जन्मा ब्राह्मण) अपना जीवन प्राप्त करता है। जीवन के अंत तक अन्य संस्कार भी सम्पन्न किए जाते हैं और उसके बाद अंत्येष्टि-क्रिया पूरी की जाती है। इस तरह योग्य ब्राह्मण को कुछ समय बाद भौतिकतावादी कार्यों और यज्ञों में अरुचि हो जाती है, लेकिन वह पूर्ण ज्ञान के साथ ऐन्द्रिय यज्ञों को कर्मेन्द्रियों को समर्पित कर देता है, जो ज्ञान की अग्नि से प्रकाशित रहती हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.