गर्भाधान संस्कार के द्वारा माता-पिता की अनुकम्पा से द्विज (दो बार जन्मा ब्राह्मण) अपना जीवन प्राप्त करता है। जीवन के अंत तक अन्य संस्कार भी सम्पन्न किए जाते हैं और उसके बाद अंत्येष्टि-क्रिया पूरी की जाती है। इस तरह योग्य ब्राह्मण को कुछ समय बाद भौतिकतावादी कार्यों और यज्ञों में अरुचि हो जाती है, लेकिन वह पूर्ण ज्ञान के साथ ऐन्द्रिय यज्ञों को कर्मेन्द्रियों को समर्पित कर देता है, जो ज्ञान की अग्नि से प्रकाशित रहती हैं।