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एमन दुर्मति  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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(प्रभु हे!)
एमन दुर्मति, संसार भितरे,
पड़िया आछिनु आमि।
तव निज-जन, कोन महाजने,
पाठाइया दिले तुमि॥1॥ |
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दया करि’ मोरे, पतित देखिया,
कहिल आमारे गिया।
ओहे दीनजन, शुन भाल कथा,
उल्लसित हबे हिया॥2॥ |
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तोमारे तारिते, श्री कृष्ण चैतन्य,
नवद्वीपे अवतार।
तोमा हेन कत, दीन हीन जने,
करिलेन भवपार॥3॥ |
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वेदेर प्रतिज्ञा, राखिबार तरे,
रुक्म-वर्ण विप्र-सुत।
महाप्रभु नामे, नदीया माताय,
सङ्गे भाइ अवधूत॥4॥ |
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नन्दसुत जिनि, चैतन्य गोसाँइ,
निजनाम करी’ दान।
तारिल जगत्, तुमि-ओ जाइया,
लह निज-परित्राण॥5॥ |
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से कथा शुनिया, आसियाछि, नाथ!
तोमार चरणतले।
भकतिविनोद, काँदिया काँदिया,
आपन काहिनी बले॥6॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे नाथ! मैं एक पापी हूँ तथा इस भौतिक संसार में गिर गया हूँ। परन्तु आपने अहैतुकी कृपावश एक महापुरुष को, जो कि आपको अतिशय प्रिय हैं, मेरे उद्धार हेतु भेज दिया है। |
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(2) उन्होंने मुझे ऐसी पतितावस्था में देखकर, दयावश मेरे पास आकर कहा, “हे पतितात्मा! मेरे इन हितकारी शब्दों को सुनो। इनको सुनने से तुम्हारा हृदय हर्षित होगा। ” |
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(3) “श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु आपका उद्धार करने के लिए ही नवद्वीप में अवतरित हुए हैं। उन्होंने आपके ही जैसे अनेकानेक पतित एवं पापियों का भौतिक संसार से उद्धार कर दिया है। ” |
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(4) वेदों की वाणी को सत्य करने हेतु, वे स्वर्णिम कांति धारण करके नवद्वीप में ब्राह्मण के पुत्र रूप में प्रकट हुए हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य तथा उनके भाई नित्यानन्द ने नदिया के समस्त लोगों को पवित्र नाम के जप से आप्लावित कर मदोन्मत्त कर दिया है। |
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(5) “भगवान् चैतन्य कृष्ण से अभिन्न हैं जो कि नन्द महाराज के पुत्र हैं। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व के लोगों का उद्धार अपना पवित्र नाम वितरित करके कर दिया। आपको चाहिए कि आप उनकी शरण में जाओ और उनसे अपने उद्धार की भिक्षा माँगो। ” |
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(6) हे नाथ! इन शब्दों को सुनने के पश्चात् मैं आपके चरणकमलों के निकट आया हूँ। अतः श्रील भक्तिविनोद ठाकुर रोते-रोते अपनी कथा भगवान् से कहते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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