वैष्णव भजन  »  राधा-कुंड-तट
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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राधा-कुंड-तट-कुंज-कुटीर।
गोवर्धन-पर्वत, यामुन-तीर॥1॥
 
 
कुसुम-सरोवर, मानस-गंगा।
कलिन्द-नन्दिनी विपुल-तरंगा॥2॥
 
 
वंशी-वट, गोकुल, धीर-समीर।
वृन्दावन-तरु-लतिका-बानीर। ॥3॥
 
 
खग-मृग-कुल, मलय-बातास।
मयूर, भ्रमर, मुरली, विलास॥4॥
 
 
वेणु, शृंग, पद-चिन्ह मेघमाला।
वसन्त, शशांक, शंख, करताला॥5॥
 
 
युगल-विलासे अनुकूल जानि।
लीला-विलास उद्‌दीपक मानि॥6॥
 
 
ए-सब छोड़त कहि नाहि याउँ।
ए-सब छोड़त पराण हाराउँ॥7॥
 
 
भकतिविनोद कहे, शुन कान!
तुया उद्‌दीपक हामारा पराण॥8॥
 
 
(1) राधा-कुण्ड का तट, राधा-कुण्ड के चारोंओर कुंज, गिरि गोवर्धन, यमुना का तट...
 
 
(2) कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, यमुना (जो कि कलिंद की पुत्री हैं) की विशाल तरंगें...
 
 
(3) ... वंशीवट, गोकुल, तथा धीर-समीर साथ-ही-साथ वृन्दावन के वृक्ष, लताएँ, एवं कुंज...
 
 
(4) पक्षी, हिरण, शीतल मन्द पवन, मोर, भँवरें, वंशी की मधुर ध्वनि ...
 
 
(5) ... वंशी, सींग, चरण-चिन्ह, मेघ (बादल), वसंत, चन्द्रमा, शंख तथा करताल...
 
 
(6) ... यह समस्त वस्तुएँ दिवय-युगल श्रीश्रीराधा-कृष्ण की भक्ति के अनुकूल हैं। अतएव, मैं इन समस्त वस्तुओं को भगवान्‌ की लीला-वृद्धि में सहायक मानता हूँ।
 
 
(7) मैं इन सब वस्तुओं के बिना नहीं जी सकता। यदि मैं इन्हें त्याग दूँ तो निश्चित ही मेरी मृत्यु हो जाएगी।
 
 
(8) श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, “हे कृष्ण! जिस भी किसी वस्तु से मुझे आपका स्मरण होता है, वह मेरा जीवन एवं प्राण है। ”
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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