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राधा-भजने यदि  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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राधा-भजने यदि मति नाहि भेला।
कृष्ण-भज तव अकारण गेला॥1॥ |
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आतप रहित सुरय नाहि जानि।
राधा-विरहीत माधव नाहि मानि॥2॥ |
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केवल माधव पूजये सो अज्ञानी।
राधा अनादर कर-इ अभिमानी॥3॥ |
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कबहिं नाहि करबि ताँकर संग।
चित्ते इच्छासि जदि व्रज-रस-रंग॥4॥ |
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राधिका-दासी यदि होय अभिमान।
शिघ्रइ मिलइ तव गोकुल-कान॥5॥ |
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ब्रह्मा, शिव, नारद, श्रुति, नारायणी।
राधिका-पद-रज-पूजये मानि॥6॥ |
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उमा, रमा, सत्या, शचि, चन्द्रा, रुक्मीणी।
राधा-अवतार सबे, अमनाय-वाणी॥7॥ |
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हेन राधा-परिचर्या याँकर धन।
भकतिविनोद तार मागये चरण॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) यदि कोई श्रीराधा की आराधना से आसक्त नहीं होता है तो श्रीकृष्ण के प्रति की गई उसकी आराधना वयर्थ हो जाती है। |
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(2) हम ताप और प्रकाश के बिना सूर्य की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, उसी प्रकार, हम श्रीराधाजी के बिना श्रीकृष्ण के विषय में सोच भी नहीं सकते हैं। |
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(3) जो भी कोई, केवल श्री कृष्ण की आराधना करता है, वह निश्चित रूप से अज्ञानी वयक्ति है। केवल एक अभिमानी वयक्ति ही श्री राधाजी का अनादर करने की हिम्मत कर सकता है। |
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(4) जो भी ब्रज के परम आनन्दमय प्रेमपूर्ण भाव की अपने हृदय में अनुभूति करना चाहता है, उसे ऐसे वयक्ति का संग कभी नहीं करना चाहिए। |
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(5) यदि वयक्ति स्वयं को श्रीराधाजी की दासी समझता है तो उसे गोकुल के अधिपति, श्रीकृष्ण, शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं। |
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(6) यह सच है कि ब्रह्माजी, शिवजी, नारद मुनि, मूर्तिमान वेद, और श्री नारायण भगवान् की संगिनी लक्ष्मी जी, श्रीराधा जी के चरण कमलों की धूल की पूजा करते हैं। |
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(7) वैदिक साहित्यों का यह कथन है कि देवी दुर्गा, भाग्य की देवी, सत्या, शची, चन्द्रावली और रुक्मिणी, सभी श्री राधाजी की विस्तार हैं। |
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(8) श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ऐसे वयक्ति के चरण कमलों में रहने की विनती करते हैं जिसका एकमात्र धन केवल श्रीराधाजी की आराधना करना है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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