|
|
|
विद्यार विलासे  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
|
|
विद्यार विलासे, काटाइनु काल,
परम साहसे आमि।
तोमार चरण, ना भजिनु कभु,
एखन शरण तुमि॥1॥ |
|
|
पढ़िते पढ़िते, भरसा बाढ़िल,
ज्ञाने गति हबे मानि’।
से आशा विफल, से ज्ञान दुर्बल,
से ज्ञान अज्ञान जानि। ॥2॥ |
|
|
जड़-विद्या यत, मायार वैभव,
तोमार भजने बाधा।
मोह जनमिया, अनित्य संसारे,
जीवके करये गाधा॥3॥ |
|
|
सेइ गाधा ह’ये, संसारेर बोझा,
बहिनु अनेक काल।
वार्द्धक्ये एखन, शक्तिर अभावे
किछु नाहि लागे भाल॥4॥ |
|
|
जीवन यातना, हइल एखन,
से विद्या अविद्या भेल।
अविद्यार ज्वाला, घटिल विषम,
से विद्या हइल शेल॥5॥ |
|
|
तोमार चरण, बिना किछु धन,
संसारे ना आछे आर।
भकतिविनोद, जड़-विद्या छाड़ि,’
तुया पद करे सार॥6॥ |
|
|
शब्दार्थ |
(1) मैंने अपना समय अपने विद्योपार्जन के फलों को भोगने में वयतीत कर दिया। मैंने आपके चरणकमलों का भजन करने की कभी भी परवाह नहीं की। परन्तु अब मैं आपको अपना आश्रय स्वीकार करता हूँ। |
|
|
(2) अपने विद्याध्ययन के दौरान मुझे दृढ़ विश्वास हो गया कि भौतिक ज्ञान के द्वारा मुझे अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। परन्तु मेरी लालसा फलोत्पादक नहीं रही, क्योंकि भौतिक ज्ञान तुच्छ है और अविद्या (मोह) का कारण है। |
|
|
(3) समस्त प्रकार की भौतिक शिक्षा माया की चालें हैं तथा वास्तव में वे आपके भजन में बाधाएँ हैं। इस प्रकार की शिक्षा जीवात्माओं के मनों में मोह उत्पन्न करती हैं। वास्तविकता तो यह है कि यह शिक्षा जीव को इस अनित्य भौतिक जगत् में गधा बना देती है। |
|
|
(4) गधे की भाँति, मैंने अपने पारिवारिक जीवन का बोझ बहुत समय तक ढोया। अब मैं वृद्ध हो गया हूँ तथा मेरे अन्दर थोड़ी भी शारीरिक शक्ति नहीं बची है। मुझे प्रसन्नता अनुभव नहीं होती। |
|
|
(5) अब मेरा जीवन मेरे लिए अत्यधिक कष्टप्रद बन गया है। मेरी शिक्षा मेरी अविद्या का कारण बन गई। मेरी अविद्या मुझे तीव्र वेदना दे रही है मानो मुझे तीर मारा गया हो। |
|
|
(6) इस संसार में आपके चरणकमलों के अलावा अन्य कोई धन नहीं है। अतएव, भक्तिविनोद ठाकुर समस्त प्रकार की भौतिक शिक्षा को त्याग कर, आपके चरणकमलों को ही सार रूप में स्वीकार करते हैं। |
|
|
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
|
|
|