वैष्णव भजन » गुरुदेवे व्रजवने व्रजभुमिवासि जने |
|
| | गुरुदेवे व्रजवने व्रजभुमिवासि जने  | श्रील भक्तिविनोद ठाकुर | भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | | | | गुरुदेवे, व्रजवने, व्रजभुमिवासि जने,
शुद्ध भक्ते, आर विप्रगणे
इष्ट मंत्रे, हरिनामे, युगल भजन कामे,
कर रति अपुर्व यतने॥1॥ | | | धरि मन चरणे तोमार
जानियाछि एबे सार, कृष्णभक्ति बिना आर,
नाहि घुचे जिवेर संसार॥2॥ | | | कर्म, ज्ञान, तपः, योग, सकलइ त’ कर्मभोग,
कर्म छाडाइते केह नारे
सकल छाडिया भाइ, श्रद्धादेवीर गुण गाइ,
याँर कृपा भक्ति दिते पारे॥3॥ | | | छाडि’ दम्भ अनुक्षण, स्मर अष्टतत्त्व मन,
कर ताहे निष्कपटे रति
सेइ रति प्रार्थनाय, श्रीदास गोस्वामी पाय,
ए भक्तिविनोद करे नति॥4॥ | | | शब्दार्थ | (1) गुरुदेव, व्रज के द्वादश वन, व्रजवासी लोग, शुद्ध भक्त, ब्राह्मण, इष्ट मंत्र व हरिनाम तथा श्री राधा कृष्ण जी के युगल भजन की इच्छा में खूब यत्न के साथ प्रीति करो। | | | (2) मैंने अपना मन आपके चरणो में सौंप दिया है। अब सार बात समझ में आयी कि श्री कृष्ण भक्ति के बिना जीव का आवागमन रूप संसार चक्र कभी भी खत्म नहीं होता। | | | (3) कर्म, ज्ञान, तपस्या तथा योग ये सभी कर्मों के भोग भुगवाएँगे। कोई भी कर्म चक्र से छुड़ा नहीं सकता। इसलिए भाई! सब छोड़कर तुम श्रद्धा देवी के गुणगान गाओ, जिनकी कृपा तुम्हें भक्ति दे सकती है। | | | (4) अतः हर समय दंभ का परित्याग कर के अष्ट-तत्त्व का स्मरण करो और उन्हीं में निष्कपट रूप से प्रीति करो। उसी प्रीति के लिए श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी के चरणों में प्रार्थना करते हैं। | | | अष्ट-तत्त्व भजन के प्रारंभ में लिखें आठ तत्त्व - गुरुदेव, व्रज के द्वादश वन, व्रजवासी लोग, शुद्ध भक्त, ब्राह्मण, इष्ट मंत्र व हरिनाम तथा श्री राधा कृष्ण जी के युगल भजन | | | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ | | |
|
|