श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.5.10 
 
 
पयोधिं येन निर्मथ्य सुराणां साधिता सुधा ।
भ्रममाणोऽम्भसि धृत: कूर्मरूपेण मन्दर: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  अजित ने क्षीरसागर का मंथन करके देवताओं के लिए अमृत उत्पन्न किया। वे कछुए के रूप में वह महान मंदरा पर्वत को अपनी पीठ पर ढोकर इधर-उधर चलते-फिरते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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