श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  8.18.29 
 
 
श्रीबलिरुवाच
स्वागतं ते नमस्तुभ्यं ब्रह्मन्किं करवाम ते ।
ब्रह्मर्षीणां तप: साक्षान्मन्ये त्वार्य वपुर्धरम् ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  तब बलि महाराजा ने वामनदेव से कहा: हे ब्राह्मण! मैं आपको हार्दिक स्वागत करता हूँ और आपको सादर नमस्कार करता हूँ। कृपया बतायें कि हम आपके लिए क्या करें? हम आपको ब्रह्मर्षियों की तपस्या का साकार रूप मानते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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