श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 28-29
 
 
श्लोक  7.1.28-29 
 
 
कीट: पेशस्कृता रुद्ध: कुड्यायां तमनुस्मरन् ।
संरम्भभययोगेन विन्दते तत्स्वरूपताम् ॥ २८ ॥
एवं कृष्णे भगवति मायामनुज ईश्वरे ।
वैरेण पूतपाप्मानस्तमापुरनुचिन्तया ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  एक मधुमक्खी (भृंगी) ने एक कीड़े को दीवार के छेद में बन्दी बना दिया, तब से कीड़ा हमेशा भय और शत्रुता के कारण उस मधुमक्खी के बारे में सोचता रहता है और बाद में केवल उसी के बारे में सोचते-सोचते स्वयं मधुमक्खी बन जाता है। उसी तरह, अगर सारे बद्धजीव किसी तरह से सच्चिदानन्द विग्रह श्रीकृष्ण के बारे में सोचते हैं, तो वे अपने सारे पापों से मुक्त हो जाएँगे। वे भगवान को चाहे पूज्य रूप में मानें या शत्रु के रूप में, उन्हें लगातार याद करने से उन सभी को अपना आध्यात्मिक शरीर फिर से प्राप्त हो जाएगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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