श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 3: श्रीशिव तथा सती का संवाद  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.3.12 
 
 
पश्य प्रयान्तीरभवान्ययोषितो
ऽप्यलड़्क़ृता: कान्तसखा वरूथश: ।
यासां व्रजद्‌भि: शितिकण्ठ मण्डितं
नभो विमानै: कलहंसपाण्डुभि: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे अजमा हे नीलकण्ठ, न केवल मेरे सम्बन्धी बल्कि दूसरी स्त्रियाँ भी सुंदर वस्त्र पहनकर और आभूषणों से सजकर अपने पति और मित्रों के साथ जा रही हैं। देखो तो उनके सफ़ेद हवाईजहाजों के झुंड ने पूरे आसमान को कितना सुंदर बना दिया है!
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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