वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना
»
श्लोक 36
श्लोक
4.12.36
यद्भ्राजमानं स्वरुचैव सर्वतो
लोकास्त्रयो ह्यनु विभ्राजन्त एते ।
यन्नाव्रजञ्जन्तुषु येऽननुग्रहा
व्रजन्ति भद्राणि चरन्ति येऽनिशम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
दया के बिना वैकुण्ठ में नहीं पहुँचा जा सकता, जिसके प्रकाश से सारा भौतिक जगत जगमगाता है। जो प्राणी लगातार दूसरे प्राणियों के कल्याण के कार्य में लगे रहते हैं, केवल वही वैकुण्ठ पहुँच पाते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.