श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  2.1.33 
 
 
नद्योऽस्य नाड्योऽथ तनूरुहाणि
महीरुहा विश्वतनोर्नृपेन्द्र ।
अनन्तवीर्य: श्वसितं मातरिश्वा
गतिर्वय: कर्म गुणप्रवाह: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, नदियाँ उस विराट शरीर की नसें हैं, वृक्ष रोम हैं और सर्वशक्तिशाली वायु उनकी श्वास है। गुजरते हुए युग उनकी गतिविधियाँ हैं और भौतिक प्रकृति के तीनों गुणों की प्रतिक्रियाएँ उनके कार्यकलाप हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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