श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.11.8 
 
 
अहो सनाथा भवता स्म यद्वयं
त्रैविष्टपानामपि दूरदर्शनम् ।
प्रेमस्मितस्‍निग्धनिरीक्षणाननं
पश्येम रूपं तव सर्वसौभगम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  अहो! आज पुन: आपकी उपस्थिति से हम आपके संरक्षण में आ गए, यह हमारा सौभाग्य है, क्योंकि स्वर्ग के निवासियों के यहाँ भी आप कभी-कभार ही जाते हैं। अब आपके हँसते हुए चेहरे को देखना हमारे लिए संभव हो सका है, जो अपना प्यार दर्शाती दृष्टि से परिपूर्ण है। अब हम आपके दिव्य स्वरूप को देख सकते हैं, जो सभी सौभाग्य से परिपूर्ण है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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