श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  1.11.35 
 
 
स एष नरलोकेऽस्मिन्नवतीर्ण: स्वमायया ।
रेमे स्त्रीरत्नकूटस्थो भगवान् प्राकृतो यथा ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण अपनी निष्काम दया से अपनी आंतरिक शक्ति के द्वारा इस पृथ्वी पर अवतरित हुए और उपयुक्त महिलाओं के साथ आनंदमय जीवन व्यतीत किया, मानों वे सांसारिक कार्यों में लगे हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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