स एष नरलोकेऽस्मिन्नवतीर्ण: स्वमायया ।
रेमे स्त्रीरत्नकूटस्थो भगवान् प्राकृतो यथा ॥ ३५ ॥
अनुवाद
पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण अपनी निष्काम दया से अपनी आंतरिक शक्ति के द्वारा इस पृथ्वी पर अवतरित हुए और उपयुक्त महिलाओं के साथ आनंदमय जीवन व्यतीत किया, मानों वे सांसारिक कार्यों में लगे हों।