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ढुले ढुले गोरा चांद  |
अज्ञातकृत |
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ढुले ढुले गोरा-चांद
हरि गुण गाइ
आसिया वृंदावने
नाचे गौर राय॥1॥ |
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वृंदावनेर तरुर लता
प्रेमे कोय हरिकथा
निकुञ्जेर पखि गुलि
हरिनाम सुनाई॥2॥ |
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गौर बोले हरि हरि
शारी बोले हरि हरि
मुखे मुखे शुक शारी
हरिनाम गाइ॥3॥ |
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हरिनामे मत्त होये
हरिणा आसिछे देय
मयूर मयूरी प्रेमे
नाचिया खेलाय॥4॥ |
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प्राणे हरि ध्याने हरि
हरि बोलो वदन भोरि
हरिनाम गेये गेये
रसे गले जाइ॥5॥ |
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आसिया जमुनार कुले
नाचे हरि हरि बोले
जमुना उठोले एसे
चरण धोयाइ॥6॥ |
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शब्दार्थ |
(1) चन्द्रमा सदृश भगवान् गौरा चाँद, नृत्य करते हुए, इधर-उधर झूलते हुए, और भगवान् हरि की महिमा का गुणगान करते हुए, वृन्दावन में पहुँचते हैं। |
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(2) वृन्दावन के वृक्षों को अलंकृत करती हुई उनमें लिपटी हुई लताएँ परम आनन्दित प्रेम से भाव विह्वल हो गई है, और वे भगवान् हरि की महिमा व यश के विषय में बोल रही हैं। पक्षियों के झुण्ड जो वृक्षों के समूह में या बगीचों मे रहते हैं, भगवान् हरि के नाम का गान कर रहे हैं। |
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(3) भगवान् गौर कहते हैं, “हरि! हरि!”, एक मादा तोता (शुक) उत्तर देती है, “हरि! हरि!” और तब सारे नर एवं मादा तोते सब साथ मिलकर, जोर से हरि के नाम का सहगान करते है। |
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(4) पवित्र भगवन्नाम द्वारा नशे में मद होकर, हिरन वन से बाहर आ जाता है। मोर व मोरनियाँ परम आनन्दित प्रेमपूर्ण भाव में भाव विभोर होकर नृत्य कर रहे हैं तथा उल्लासपूर्ण क्रीड़ा कर रहे हैं। |
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(5) भगवान् हरि उनके हृदय में हैं, भगवान् हरि उनके ध्यान में हैं, और वे अपनी वाणी (आवाज) से सदा हरि के नाम का उच्चारण करते हैं। गौर चाँद परम आनन्दित प्रेम पूर्ण भाव के मधुर, रसीली, मनोरम ध्वनि द्वारा नशे में मस्त हैं और हरिनाम गाते-गाते भूमि पर घूमते हुए लुढ़कते हैं। |
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(6) यमुना नदी के तट पर पहुँच कर, वह “हरि! हरि!” का उच्चारण करते हुए अति उत्साहित होकर नृत्य करते हैं। माता यमुना इतनी अधिक प्रेमानन्द से भाव विभोर हो जाती हैं कि वे उठती हैं और भगवान् गौरांग के चरण धोने के लिए आगे आती हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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