वैष्णव भजन  »  श्री गौर गीति
 
 
राधा मोहन दास       
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सखे कलय गौरमुदारम
निन्दित हाटक कान्ति कलेवर
गर्वित मारक मारम॥1॥
 
 
मधुकर रञ्जित मालति मण्डित
जितघन कुञ्चित केशम॥2॥
 
 
तिलक विनिन्दित शशधर रुपक
भुवन मनोहर वेशम्
मधु मधुरस्मित लोभित तनुभृत
अनुपम भाव विलासम॥3॥
 
 
निखिल निज जन मोहित मानस
विकथित गद गद भाषम
परमा किञ्चन किण्चन नरगण
करुणा वितरण शिलम॥4॥
 
 
अर्थ / अनुवाद केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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