वैष्णव भजन  »  श्री गौर आरती (संध्या आरती)
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ |
 
 
जय जय गोराचाँदेर आरतिक शोभा।
जाह्नवी तट वने जगमन लोभा॥1॥
 
 
दक्षिणे निताईचाँद बामे गदाधर।
निकटे अद्वैत श्रीवास छत्रधर॥2॥
 
 
बसियाछे गौराचाँदेर रत्न-सिंहासने।
आरति करेन ब्रह्मा-आदि देवगणे॥3॥
 
 
नरहरि आदि कोरि चामर ढुलाय।
सञ्जय मुकुंद वासुघोष आदि गाय॥4॥
 
 
शंख बाजे घण्टा बाजे, बाजे करताल।
मधुर मृदंग बाजे परम रसाल॥5॥
 
 
(शंख बाजे घंटा बाजे, मधुर मधुर मधुर बाजे।
निताई गौर हरिबोल हरिबोल हरिबोल हरिबोल॥)
बहु कोटि चन्द्र जिनि वदन उज्जवल।
गलदेशे वनमाला करे झलमल॥6॥
 
 
शिव-शुक नारद प्रेमे गद्‌गद्।
भकति-विनोद देखे गौरार सम्पद॥7॥
 
 
(1) श्रीचैतन्य महाप्रभु की सुन्दर आरती की जय हो, जय हो। यह गौर-आरती गंगा तट पर स्थित एक कुंज में हो रही है तथा संसार के समस्त जीवों को आकर्षित कर रही है।
 
 
(2) उनके दाहिनी ओर नित्यानन्द प्रभु हैं तथा बायीं ओर श्रीगदाधर हैं। चैतन्य महाप्रभु के दोनों ओर श्रीअद्वैत प्रभु तथा श्रीवास प्रभु उनके मस्तक के ऊपर छत्र लिए हुए खड़ें हैं।
 
 
(3) चैतन्य महाप्रभु सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं तथा ब्रह्माजी उनकी आरती कर रहे हैं, अन्य देवतागण भी उपस्थित हैं।
 
 
(4) चैतन्य महाप्रभु के अन्य पार्षद, जैसे नरहरि आदि चँवर डुला रहे हैं तथा मुकुन्द एवं वासुघोष, जो कुशल गायक हैं, कीर्तन कर रहे हैं।
 
 
(5) शंख, करताल तथा मृदंग की मधुर ध्वनि सुनने में अत्यन्त प्रिय लग रही है।
 
 
(6) चैतन्य महाप्रभु का मुखमण्डल करोड़ों चन्द्रमा की भांति उद्‌भासित हो चमक रहा है तथा उनकी वनकुसुमों की माला भी चमक रही है।
 
 
(7) महादेव, श्रीशुकदेव गोस्वामी तथा नारद मुनि के कंठ प्रेममय दिवय आवेग से अवरुद्ध हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैंः तनिक चैतन्य महाप्रभु का वैभव तो देखो।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.