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जय जय जगन्नाथ  |
श्रील वासुदेव घोष |
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जय जय जगन्नाथ शचीर नंदन
त्रिभुवने करे जार चरण वंदन॥1॥ |
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नीलाचले शंख-चक्र-गदा-पद्म-धर
नदीया नगरे दण्ड-कमण्डलु-कर॥2॥ |
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केह बोले पूरबे रावण वधिला
गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश करिला॥3॥ |
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श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार
हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार॥4॥ |
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वासुदेव घोष बोले करि जोड़ हाथ
जेइ गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ॥5॥ |
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शब्दार्थ |
(1) जगन्नाथ मिश्र एवं शची देवी के प्रिय पुत्र की जय हो, जय हो! समस्त तीनों लोक उनके चरण कमलों में वन्दना करते हैं। |
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(2) नीलाचल में वे शंख, चक्र, गदा और कमल पुष्प धारण करते हैं, जबकि नदिया नगर में वे एक सन्यासी का डंडा और कमंडलु धारण किए रहते हैं। |
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(3) ऐसा कहा गया है कि प्राचीन समय में भगवान् रामचन्द्र जी के रूप में, उन्होंने असुर रावण का वध किया था। तब उसके पश्चात् भगवान् कृष्ण के रूप में, उन्होंने वैभवपूर्ण ऐश्वर्यपूर्ण गोलोक की लीलाएँ प्रदर्शित कीं। |
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(4) अब वे पुनः भगवान् गौरांग के रूप में आए हैं, गौर-वर्ण अवतार श्रीराधाजी के प्रेम व परमआनन्दित भाव से युक्त, और पवित्र भगवन्नामों हरे कृष्ण के कीर्तन का विस्तार से चारों ओर प्रसार किया है। (अब उन्होंने हरे कृष्ण महामंत्र का वितरण किया है, उद्धार करने का महान कीर्तन। वे तीनों लोकों का उद्धार करने के लिए पवित्र भगवन्नाम वितरित करते हैं। यही वह रीति है जिससे वे प्रचार करते है। ) |
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(5) वासुदेव घोष दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं, “वे, जो गौर हैं, वही कृष्ण है, और वही जगन्नाथ जी हैं। ” |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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