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मन रे! कहना गौर कथा  |
श्रील नरहरि दास |
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मन रे! कहना गौर कथा।
गौरेर नाम आमियार धाम
पीरिति मूरति दाता॥1॥ |
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शयने गौर स्वपने गौर
गौर नयनेर तारा।
जीवने गौर मरणे गौर
गौर गलार हार॥2॥ |
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हियार माझारे गौरांगे राखिये
विरले बसिया र’व।
मनेर साधते से रूप-चाँदेर
नयने नयने थोब॥3॥ |
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गौर विहने ना बाँचि पराणे
गौर करेछि सार।
गौर बलिया जाऊक जीवन
किछु ना चाहिब आर॥4॥ |
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गौर गमन गौर गठन
गौर मुखेर हासि।
गौर पीरिति गौर मूरति
हियाय रहल पशि॥5॥ |
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गौर धरम गौर करम
गौर वेदेर सार।
गौर चरणे पराण सँपिनु
गौर करिबेन पार॥6॥ |
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गौर शब्द गौर सम्पद
जाहार हियाय जागे।
नरहरि दास तार दासेर दास
चरणे शरण मागे॥7॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे मन! गौरसुन्दर की कथाओं का कीर्तन करो। गौर का नाम अमृत का भण्डार है। वे प्रेम की मूर्ति हैं तथा दान करने में परम उदार हैं। |
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(2) मेरे शयन में, स्वप्न में तथा मेरी आँखों के तारा स्वरूप गौर ही हैं। मेरे जीवन में अथवा मरण में केवल गौर ही हैं। गौर ही मेरे गले का हार हैं। |
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(3) मैं अपने हृदय के मध्य में गौराङ्ग को रखकर एकान्त में बैठा रहूँगा। मन में इसी अभिलाषा को लेकर उस रूपचन्द्र को आँखों के बीच में रखूँगा। |
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(4) मुझे गौर के बिना जीना नहीं है, क्योंकि मैंने उन्हीं को जीवन का सार बनाया है। मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए, मेरी केवलमात्र एक ही अभिलाषा है कि जब इस देह से प्राण निकले, तो गौर कहते-कहते ही निकले। |
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(5) मेरे चलने में, मेरे सजने में, मेरी हँसने में, मेरी प्रीति में, मेरी मूर्ति में, मेरे हृदय में गौर ही हैं। |
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(6) मेरे धर्म में, मेरे कर्म में व वेदों का सार केवल गौर ही हैं। मैंने अपने प्राणों को श्रीगौरसुन्दर के चरणों में समर्पित कर दिया है, वे ही मुझे पार लगायेंगे। |
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(7) गौर-शब्द तथा गौर-सम्पद जिनके हृदय में जाग उठता है, नरहरिदास उनके दासों के दास के चरणों की शरण माँगते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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