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हे गोविन्द हे गोपाल! केशव माधव दीन दयाल  |
श्रील जयदेव गोस्वामी |
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हे गोविन्द, हे गोपाल!
केशव माधव दीन – दयाल॥1॥ |
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तुमि परम दयाल प्रभु, परम दयाल
केशव माधव दीन – दयाल॥2॥ |
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पीत – बसन परि मयूरेर शिख धरि
मूरली र वाणी – तुले बोले राधा – नाम॥3॥ |
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तुमि मदेर गोपाल प्रभु, मदेर गोपाल
केशव माधव दीन – दयाल॥4॥ |
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भव – भय – भञ्जन श्री मधु – सूदन
विपद – भञ्जन तुमि नारायण॥5॥ |
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शब्दार्थ |
(1) गायों को आनन्द देने वाले हे गोविन्द! गायों का पालन करने वाले हे गोपाल! सुन्दर बालों वाले हे केशव! हे लक्ष्मीपति माधव! आप पतित जीवों के प्रति सदैव दयालु रहते हैं। |
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(2) आप परम दयालु हैं, हे भगवान्, परम दयालु! हे केशव! हे माधव! हे दीन दयाल! |
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(3) पीत वस्त्र धारण करके और अपने मुकुट पर मोरपंख पहनकर आप अपनी मुरली के छिद्रों से राधारानी के नामों का उच्चारण करते हैं। |
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(4) आप अत्यन्त आनन्द देने वाले गोपाल हैं, हे भगवन्! आप अत्यन्त आनन्द प्रदान करने वाले गोपाल हैं! हे केशव! हे माधव! हे दीन-दयाल! |
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(5) आप इस संसार में जन्म-मृत्यु के चक्र द्वारा उत्पन्न भय का नाश करते हैं, और आपने मधु राक्षस का वध किया है। आप सभी विपदाओं को नष्ट करते हैं तथा सभी जीवों के आश्रय हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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