वैष्णव भजन  »  श्री गुरु वंदना
 
 
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर       
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श्रीगुरुचरण पद्म, केवल भकति-सद्म,
वन्दो मुइ सावधान मते।
याँहार प्रसादे भाई, ए भव तरिया याइ,
कृष्ण प्राप्ति हय याँहा हइते॥1॥
 
 
गुरुमुख पद्म वाक्य, चितेते करिया ऐक्य,
आर न करिह मने आशा।
श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति,
ये प्रसादे पूरे सर्व आशा॥2॥
 
 
चक्षुदान दिलो येई, जन्मे जन्मे प्रभु सेइ,
दिवय ज्ञान हृदे प्रकाशित।
प्रेम-भक्ति याँहा हइते, अविद्या विनाश जाते,
वेदे गाय याँहार चरित॥3॥
 
 
श्रीगुरु करुणा-सिन्धु, अधम जनार बंधु,
लोकनाथ लोकेर जीवन।
हा हा प्रभु कोरो दया, देह मोरे पद छाया,
एबे यश घुषुक त्रिभुवन॥4॥
 
 
(1) हमारे गुरुदेव (आध्यात्मिक गुरु) के चरणकमल ही एकमात्र साधन हैं जिनके द्वारा हम शुद्ध भक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मैं उनके चरणकमलों में अत्यन्त भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होता हूँ। उनकी कृपा से जीव भौतिक क्लेशों के महासागर को पार कर सकता है तथा कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकता है।
 
 
(2) मेरी एकमात्र इच्छा है कि उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों द्वारा अपनी चेतना को शुद्ध करूँ। उनके चरणकमलों में अनुराग ऐसी सिद्धि है जो समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।
 
 
(3) वे मेरी बन्द आँखों को खोलते हैं तथा मेरे हृदय में दिवय ज्ञान भरते हैं। जन्म-जन्मातरों से वे मेरे प्रभु हैं। वे प्रेमाभक्ति प्रदान करते हैं और अविद्या का नाश करते हैं। वैदिक शास्त्र उनके चरित्र का गान करते हैं।
 
 
(4) हे गुरुदेव, करूणासिन्धु तथा पतितात्माओं के मित्र! आप सबके गुरु एवं सभी लोगों के जीवन हैं। हे गुरुदेव! मुझ पर दया कीजिए तथा मुझे अपने चरणों की छाया प्रदान दीजिए। आपका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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