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आमि यमुना पुलिने  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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(आमि) यमुना पुलिने, कदम्ब-कानने,
कि हेरिनु सखी! आज।
(आमार) श्याम वंशीधारी, मणि मञ्चोपरि,
करे’लीला रसराज॥1॥ |
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(तार) अष्टदलोपरि, श्रीराधा-श्रीहरि,
अष्ट सखी परिजन॥2॥ |
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(तार) सुगीत-नर्तने, सब सखीगणे
तुषिछे युगलधने।
(तखन) कृष्णलीला हेरि, प्रकृति सुन्दरि
विस्तारिछे शोभा वने॥3॥ |
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(आमि) घरे ना याइब, वने प्रवेशिब,
ओ लीला-रसेर तरे।
(आमि) त्यजि’ कुललाज, भज ब्रजराज,
विनोद मिनती करे,’॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे सखी! यह आज मैंने क्या देखा? यमुना नदी के तट पर स्थित कदम्ब वृक्ष के नीचे एक सुन्दर श्याम वर्णी सुकुमार अपने हाथों में वंशी धारण किए हुए, रत्न-जड़ित सिंहासन पर विराजमान है। वह सुकुमार अपनी लीलाएँ इस प्रकार प्रकट कर रहा है मानो कि वह समस्त दिवय रसों का राजा हो। |
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(2) कृष्ण अपनी रसिक लीलाएँ प्रकट कर रहे हैं, जो अमृत के झरने समान हैं। श्री राधा एवं श्री हरि को उनकी परम प्रिय सेविकाओं, आठ प्रमुख गोपिकाओं ने घेरा हुआ है, जो एक रत्नजड़ित आसन की आठ पंखुड़ियों पर विराजमान हैं। |
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(3) मधुर संगीत एवं उत्तम नृत्य द्वारा समस्त गोपियाँ अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य निधि, दिवय युगल, को तुष्टि प्रदान कर रही हैं। कृष्ण की रास लीलाओं का दर्शन करने मात्र से, आध्यात्मिक शक्ति वृन्दावन के वन का सौन्दर्य विस्तार कर रही है। |
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(4) इन लीलाओं का रसास्वादन करने हेतु मैं घर की ओर न जाकर वन में प्रवेश करूँगी। घर-परिवार की लज्जा का संकोच त्याग कर, एकमात्र व्रजराज का भजन करो। यह श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का विनम्र निवेदन है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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