वैष्णव भजन » प्रपञ्चे पडिया, अगति हइय |
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| | प्रपञ्चे पडिया, अगति हइय  | श्रील भक्तिविनोद ठाकुर | भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | | | | हरि हे!
प्रपञ्चे पडिया, अगति हइया,
ना देखि उपाय आर
अगतिर गति, चरणे शरण,
तोमाय करिनु सार॥1॥ | | | करम गेयान, किछु नाहि मोर,
साधन भजन नाइ
तुमि कृपामय, आमि त’ कांगाल,
अहैतुकी कृपा चाइ॥2॥ | | | वाक्य – मनो – वेग, क्रोध – जिह्वा – वेग,
उदर – उपस्थ – वेग
मिलिया ए सब, संसारे भासाये,
दितेछे परमोद्वेग॥3॥ | | | अनेक यतने, से सब दमने,
छाडियाछि आशा आमि
अनाथेर नाथ! डाकि तव नाम,
एखन भरसा तुमि॥4॥ | | | शब्दार्थ | (1) हे भगवान् हरि! मैं इस भौतिक संसार में गिर गया हूँ तथा पूर्णरूपेण पथभ्रष्ट हूँ। वस्ततुः, मुझे मेरे उद्धार का कोर्इ भी उपाय नहीं दीखता। अतएव, मैं आपके चरणकमलों का आश्रय ग्रहण करता हूँ। अनाथों की एकमात्र शरण आप ही हैं। | | | (2) न तो मेरे पास पुण्य कर्मो की पूँजी है और न ही आध्यात्मिक ज्ञान है। मैं आध्यात्मिक उन्नति तथा परम् भगवान् की आराधना से विहीन हूँ। आप परम् दयालु हैं तथा मैं कंगाल, पतित हूँ। अतएव, मैं आपकी अहैतुकी कृपा की भिक्षा माँगता हूँ। | | | (3) मैं निरन्तर वाणी, मन, क्रोध, जिह्वा, उदर तथा उपस्थ के वेगों द्वारा वयाकुल रहता हूँ। यह सब एकसाथ मुझे भौतिक संसार की तरंगों में डाल रहे हैं, अतएव मेरे लिए अत्यन्त वयग्रता उत्पन्न कर रहे हैं। | | | (4) मैनें इस वेगों को नियन्त्रित करने के निजी पय्रास त्याग दिए हैं। हे अनाथों के नाथ! अब मैं आपके पवित्र नाम का जप-कीतर्न करता हूँ क्योंकि आप ही मरे एकमात्र आशा हैं। | | | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ | | |
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