वैष्णव भजन  »  प्रभु तव पद-युगे
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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प्रभु तव पद-युगे मोर निवेदन।
नाहि मागी देह-सुख, विद्या धन, जन॥1॥
 
 
नाहि मागि स्वर्ग आर मोक्ष नाहि मागि।
ना करि प्रार्थना कोन विभूतिर लागि॥2॥
 
 
निज-कर्म-गुण-दोषे ये ये जन्म पाइ।
जन्मे जन्मे येन तव नाम गुण गाइ॥3॥
 
 
एइ मात्र आशा मम तोमार चरणे।
अहैतुकी भक्ति हृदे जागे अनुक्षणे॥4॥
 
 
विषये ये प्रिति एबे आछये आमार।
सेइमत प्रिती हउक चरणे तोमार॥5॥
 
 
विपदे सम्पदे ताहा थाकुक सम-भावे।
दिने-दिने वृद्धि-हउक नामेर प्रभावे॥6॥
 
 
पशु-पक्षी हये थाकि स्वर्गे वा निरये।
तव भक्ति रह भकतिविनोद-हृदये॥7॥
 
 
(1) हे प्रभु! आपके चरण कमलों में मैं यह निवेदन करता हूँः “शारीरिक सुख, भौतिक विद्या धन-संपत्ति, या अनुयायी, मुझे नहीं चाहिए। ” हे भगवान!
 
 
(2) मुझे न तो स्वर्ग का सुख चाहिए, न ही भौतिक अस्तित्व से मुक्ति। मैं किसी भी प्रकार की योग सिद्धि प्राप्त करने के लिए आपसे कोई प्रार्थना नहीं करता हूँ। ”
 
 
(3) “अपने अच्छे व बुरे कर्मों के फलों के अनुसार चाहे किसी भी योनि में मेरा जन्म हो, मैं सदा आपके पवित्र नाम का जप करता रहूँ और आपके विशुद्ध दिवय गुणों की महिमा का गुणगान करता रहूँ। ”
 
 
(4) मेरी एकमात्रा अभिलाषा जो मैं आपके चरणकमलों में समर्पित करता हूँ वह है कि आपकी अहैतुकी भक्ति मेरे हृदय के अन्दर सदा जागृत रहे।
 
 
(5) आपके चरणकमलों में उसी प्रकार की आसक्ति उत्पन्न कर सकूँ जो आज वर्तमान में, इस समय मुझमें भौतिक सुख-आनन्द के प्रति है।
 
 
(6) वही आसक्ति, संकट के समय में भी और सुख-प्रसन्नता के समय में भी, समान रहे, स्थायी रहे, तथा आपके पवित्र नाम के प्रभाव से दिन दिन बढ़ती रहे।
 
 
(7) मैं पशु के रूप में जन्म लूँ या पक्षी के या मैं स्वर्ग में रहूँ अथवा नरक में, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते है, की आपसे केवल इतनी प्रार्थना है कि आपकी भक्ति सदा मेरे हृदय के अंदर रहे।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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