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गोपीनाथ आमार उपाय नाइ  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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गोपीनाथ, आमार उपाय नाइ।
तुमि कृपा करि, आमारे लइले,
संसार उद्धार पाइ॥1॥ |
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गोपीनाथ, पड़ेछि मायार फेरे।
धन, दारा सुत, घिरेछे आमारे,
कामेते रेखेछे जेरे॥2॥ |
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गोपीनाथ, मन ये पागल मोर।
ना माने शासन, सदा अचेतन,
विषये रयेछे घोर॥3॥ |
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गोपीनाथ, हार ये मेनेछि आमि।
अनेक यतन, हइ विफल,
एखन भरसा तुमि॥4॥ |
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गोपीनाथ, केमने हइबे गति।
प्रबल इन्द्रिय वशीभूत मन,
ना छाड़े विषय-रति॥5॥ |
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गोपीनाथ, हृदये बसिया मोर।
मनके शमिया, लह निज पाने,
घुचिबे विपद घोर॥6॥ |
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गोपीनाथ, अनाथ देखिया मोरे।
तुमि हृषीकेश, हृषीक दमिया,
तार’हे संसृति-घोरे॥7॥ |
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गोपीनाथ, गलाय लगेछे फाँस।
कृपा-आसि धरि’ बन्धन छेदिया,
विनोदे करह दास॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे गोपीनाथ! मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। यदि आप कृपापूर्वक मुझे अपना दास स्वीकार करें तो मेरा इस भवसागर से उद्धार हो जाएगा। |
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(2) हे गोपीनाथ! मैं बहिरंगा शक्ति माया के भँवर में फँस गया हूँ। धन, पत्नी, तथा बच्चों ने मुझे घेर लिया है तथा कामेच्छाओं ने मुझे अपने वश में कर लिया है। |
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(3) हे गोपीनाथ! मेरा मन लगभग पागल हो चुका है। यह किसी भी उपदेश का पालन नहीं करता तथा वयावहारिक रूप से यह अचेतनावस्था में है। यह भौतिक सुखोपभोग में पूर्णतया निमग्न है। |
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(4) हे गोपीनाथ! मैंने हार स्वीकार कर ली है। मेरे समस्त प्रयास विफल हो चुके हैं। अब आप ही मेरी एकमात्र आशा है। |
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(5) हे गोपीनाथ! किस प्रकार मैं अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर पाऊँगा? मेरी इन्द्रियाँ अत्यन्त प्रबल हैं तथा मेरा मन पूर्णतया उनके वश में है। मेरा मन विषयासक्ति का त्याग नहीं करता। |
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(6) हे गोपीनाथ! कृपया मेरे हृदय में वास करें, तथा मेरे मन को अपनी ओर उन्मुख करें। यदि आप ऐसा करेंगे, तो इस घोर विपदा से मेरी रक्षा संभव हो पाएगी। |
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(7) हे गोपीनाथ! मेरा कोई नाथ नहीं है। आप इन्द्रियों के स्वामी हैं। अतएव, कृपया मेरी इन्द्रियाँ नियंत्रित कीजिए तथा मेरा इस घोर भौतिक जगत् से उद्धार कीजिए। |
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(8) हे गोपीनाथ! मेरी गर्दन में बन्धन बँधा हुआ है। कृपया दया रूपी तलवार से इस बन्धन को काट दीजिए। इस प्रकार कृपया श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को अपना दास स्वीकार कीजिए। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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