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गोपीनाथ, मम निवेदन  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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गोपीनाथ, मम निवेदन शुन।
विषयी दुर्जन, सदा कामरत,
किछु नाहि मोर गुण॥1॥ |
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गोपीनाथ, आमार भरसा तुमि।
तोमार चरणे, लइनु शरण,
तोमार किंकर आमि॥2॥ |
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गोपीनाथ, केमने शाधिबे मोरे।
ना जानि भकति, कर्मे जड़-मति,
पड़ेछि संसार-घोरे॥3॥ |
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गोपीनाथ, सकलि तोमार माया।
नाहि मम बल, ज्ञान सुनिर्मल,
स्वाधीन नहे ए काया॥4॥ |
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गोपीनाथ, नियत चरणे स्थान।
मागे ये पामर, काँदिया-काँदिया,
करह करुणा दान॥5॥ |
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गोपीनाथ तुमि त’सकलि पार।
दुर्जने तारिते, तोमार शकति,
के आछे पापीर आर॥6॥ |
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गोपीनाथ, तुमि कृपा-पाराबार।
जीवेर कारणे, आसिया प्रपन्चे,
लीला कैले सुविस्तार॥7॥ |
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गोपीनाथ, आमि कि दोषे दोषी।
असुर सकल, पाइल चरण,
विनोद थाकिल बसि’॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे गोपीनाथ! कृपया मेरा निवेदन सुनो। मैं एक विषयी तथा पापी वयक्ति हूँ तथा सदैव काम में रत रहता हूँ। इसी कारणवश, मैं योग्यताविहीन हूँ। |
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(2) हे गोपीनाथ! आप ही मेरे एकमात्र आश्रय हैं। मैं आपके चरणकमलों में शरणागत होता हूँ क्योंकि मैं आपका नित्य दास हूँ। |
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(3) हे गोपीनाथ! आप मुझे किस प्रकार शुद्ध करेंगे? मुझे भक्तिमय सेवा के विषय में किन्चित् भी ज्ञान नहीं है। कर्मकाण्डों में लिप्त होने के कारण मेरी बुद्धि जड़ हो गई है। मैं भौतिक जगत् में गिर गया हूँ, जो कि जीवन की सर्वाधिक भयावह स्थिति है। |
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(4) गोपीनाथ, मुझे सर्वत्र आपकी बहिरंगा शक्ति, माया की ही रचना दिखाई देती है। मुझमें बल या विशुद्ध ज्ञान का अभाव है। वस्तुतः, मेरा शरीर भी मेरे अधीन नहीं है। |
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(5) हे गोपीनाथ! यह पापी वयक्ति निरन्तर रो रहा है तथा आपके चरणकमलों के निकट वास करने की भिक्षा माँग रहा है। कृपया मुझ पर अपनी कृपा प्रदर्शित करें। |
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(6) हे गोपीनाथ! आप सबकुछ करने में समर्थ हैं। आपमें सर्वाधिक कुटिल वयक्तियों का उद्धार करने की भी शक्ति है। तब आपके अतिरिक्त यह पापी किसकी ओर देखे। |
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(7) हे गोपीनाथ! आप दयासिन्धु हैं। आपने इस भौतिक संसार में अवतरित होकर लीलायें प्रकट कीं, जिससे पतितात्माओं का कल्याण संभव हो सके। |
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(8) हे गोपीनाथ! मैं कौन से दोषों के लिए दोषी ठहराया गया हूँ? समस्त असुरों ने आपके चरणकमलों को प्राप्त कर लिया है, परन्तु श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं कि वे अभी तक यहीं बैठे हुए हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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