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श्रीकृष्णकीर्तने यदि  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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श्रीकृष्णकीर्तने यदि मानस तोहार।
परम यतने ताँह लभ अधिकार॥1॥ |
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तृणाधिक हीन-दीन अकिंचन छार।
आपने मानबि सदा छाड़ि अहंकार॥2॥ |
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वृक्ष सम क्षमा-गुण करबि साधन।
प्रति-हिंसा त्यजि अन्ये करबि पालन॥3॥ |
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जीवन-निर्वाहे आने उद्वेग ना दिबे।
पर-उपकारे निज-सुख पासरिबे॥4॥ |
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हइले-ओ-सर्व गुणे-गुणी महाशय।
प्रतिष्ठाशा छाड़ि’ कर अमानी हृदय॥5॥ |
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कृष्ण-अधिष्ठान सर्व-जीवे जानि सदा।
करबि सम्मान सबे आदरे सर्वदा॥6॥ |
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दैन्य दया, अन्ये मान, प्रतिष्ठा-वर्जन।
चारि गुणे गुणी हय’ करह किर्तन॥7॥ |
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भकतिविनोद काँदि बले प्रभु-पाय।
हेन अधिकार कबे दिबे हे आमाय॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) यदि आप श्रीकृष्ण के पवित्र नाम का जप करने की आकांक्षा करते हैं तो सर्वप्रथम नाम जप करने के योग्य बनने के लिए या नाम जप करने का अधिकार प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करें। |
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(2) वयक्ति को स्वयं को सदा घास के एक तिनके से भी निम्न समझना होगा, एक पतित वयक्ति, स्वामित्व की भावना से रहित और एक महत्वहीन, नगण्य जीव। इस प्रकार सोचते हुए, अपने मिथ्या अहंकार को त्यागना होगा। |
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(3) आपको सहिष्णुता या सहनशीलता का गुण विकसित करना होगा जिससे आप एक वृक्ष के समान बन सकें। प्रतिकार या बदले की भावना को त्याग कर, आपको दूसरों का कहना मानना होगा। |
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(4) अपना जीवन-निर्वाह करने की अवधि में, किसी के लिए भी चिंता या कुंठा उत्पन्न न करें। अन्य लोगों के कल्याण का कार्य करते समय, अपने निजी-सुख के विषय में भूल जाएँ। |
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(5) यद्यपि आप सर्व गुण सम्पन्न हैं, आपको नाम और यश पाने की इच्छा को त्यागना होगा। आपको अपने हृदय को अन्य लोगों से मान-सम्मान प्राप्त करने की अभिलाषा से रहित करना होगा। |
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(6) यह अनुभूति करके कि भगवान् कृष्ण सभी जीवों के हृदय में आसीन हैं, आपको प्रत्येक को सदा स्नेह सहित आदर देना चाहिए। |
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(7) इन चार गुणों से युक्त होकर विनम्रता, दया, दसरों को आदर-सम्मान देने के लिए तैयार रहना और यश-प्रतिष्ठा की इच्छा से रहित होना, आपको भगवान् के पवित्र नामों के जप में संलग्न हो जाना चाहिए। |
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(8) भगवान् के चरणों में गिरकर, दुखी होकर रोते हुए, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, “हे नाथ! आपके पवित्र नामों का शुद्धता से जप करने के लिए आवश्यक योग्यता आप कब मुझे प्रदान करेगें?” |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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