वैष्णव भजन » कलि कुक्कर-कदन |
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| | कलि कुक्कर-कदन  | श्रील भक्तिविनोद ठाकुर | भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | | | | कलि कुक्कर-कदन यदि चाओ (हे)।
कलियुग पावन, कलिभय-नाशन,
श्री शचीनन्दन गाओ (हे)॥1॥ | | | गदाधर-मादन, निता’येर प्राणधन,
अद्वैतेर प्रपूजित गोरा।
निमाई विश्वंभर, श्रीनिवास-ईश्वर,
भक्तसमूह चित चोरा॥2॥ | | | नदिया-शशधर, मायापुर-ईश्वर,
नाम प्रवर्तन सूर।
गृहिजन-शिक्षक, न्यासिकुल-नायक,
माधव राधा भावपूर॥3॥ | | | सार्वभौम-शोधन, गजपति-तारण,
रामानन्द-पोषण वीर।
रूपानन्द-वर्धन, सनातन-पालन,
हरिदास-मोदन धीर॥4॥ | | | ब्रजरस-भावन, दुष्ट मत-शातन
कपटी विघातन काम।
शुद्धभक्त-पालन, शुष्कज्ञान ताडन,
छलभक्ति-दुशन राम॥5॥ | | | शब्दार्थ | (1) यदि आप कलि रूपी कुक्कुर (कुत्ते) पर विजय प्राप्त करना चाहते हो तो एकमात्र शचिदेवी के पुत्र, जो कलियुग की पतितात्माओं के उद्धारक तथा कलियुग की भयावह परिस्थितियों के नाशक हैं, उनके दिवय गुणों का कीर्तन करो। | | | (2) वे गदाधर पंडित के प्रेमोन्माद की वृद्धि करते हैं। वे नित्यानन्द प्रभु के जीवन एवं प्राण हैं। वे भगवान् गौरांग, श्री अद्वैताचार्य द्वारा पूजित हैं। वे निमाई हैं। वे ही वि श्वम्भर हैं। वे श्रीनिवास आचार्य के स्वामी हैं तथा भक्तों के चित्तचोर हैं। | | | (3) वे नदिया के चन्द्रमा समान, श्री मायापुर के स्वामी, भगवान के पवित्र नामों के प्रचारक, तथा सर्वोच्च भक्त हैं। वे गृहस्थ भक्तों के शिक्षक, संन्यासियों के नायक, तथा स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं, जो कि श्रीमती राधारानी के भावों से पूरित हैं। | | | (4) वे सार्वभौम भट्टाचार्य के शुद्धिकर्ता, महाराज प्रतापरुद्र के उद्धारक, श्री रामानंदराय के पोषक, तथा परम भगवान हैं। वे रूप गोस्वामी के आनन्दवर्धक, श्री सनातन गोस्वामी के पालनकर्ता तथा श्री हरिदास ठाकुर को आनन्द प्रदान करनेवाले हैं। वे सर्वाधिक धीर वयक्तित्व हैं। | | | (5) वे ब्रज-रसों का रसास्वादन, अनधिकृत सिद्धांतों का नाश, कपटी कामेच्छाओं का मर्दन, शुद्ध भक्तों का पालन, शुष्क ज्ञान को ताड़ित करनेवाले, कैतव भक्ति का बहिष्कार करने वाले तथा शाश्वत भोक्ता हैं। | | | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ | | |
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