वैष्णव भजन  »  आमार जीवन
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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आमार जीवन, सदा पापे रत,
नाहिक पुण्येर लेश।
परेरे उद्वेग दियाछि ये कत,
दियाछि जीवेरे क्लेश॥1॥
 
 
निज सुख लागि’ पापे नाहि डरि’
दया-हीन स्वार्थ-पर।
पर-सुखे दुःखी, सदा मिथ्या-भाषी,
पर-दुःख सुखकर॥2॥
 
 
अशेष कामना, हृदि माझे मोर,
क्रोधी, दम्भ परायण।
मदमत्त सदा, विषये मोहित,
हिंसा-गर्व विभूषण॥3॥
 
 
निद्रालस्य-हत, सुकार्ये विरत,
अकार्ये उद्योगी आमि।
प्रतिष्ठा लागिया, शाठ्‌य-आचरण,
लोभ-हत सदा कामी॥4॥
 
 
ए-हेन दुर्जन, सज्जन-वर्जित
अपराधी निरन्तर।
शुभ-कार्ये शून्य, सदानर्थ-मन,
नाना दुःखे जरजर॥5॥
 
 
वार्द्धक्ये एखन उपाय विहीन,
ता’ते दीन अकिंचन।
भकतिविनोद, प्रभुर चरणे,
करे दुःख निवेदन॥6॥
 
 
(1) मेरा जीवन सदा पापपूर्ण कार्यो में वयतीत हुआ, अतएव मुझमें पुण्य लेशमात्र भी नहीं है। मैंने दूसरों को अत्यधिक क्लेश दिया है। वस्तुतः मुझे लगता है कि मैंने समस्त जीवों को कष्ट पहुँचाया है।
 
 
(2) मुझे अपनी प्रसन्नता के लिए पापपूर्ण कार्यो को करते हुए भी डर नहीं लगता क्योंकि मैं निर्दयी एवं स्वार्थी हूँ। मैं दूसरों की प्रसन्नता को देखकर अप्रसन्न हो जाता हूँ। मैं सदैव झूठ बोलता हूँ, तथा दूसरों को कष्ट में देखकर मुझे प्रसन्नता होती है।
 
 
(3) मेरे हृदय में अनन्त भौतिक इच्छाएँ हैं। मैं क्रोध से भरा हुआ तथा मिथ्या अहंकार से फूला हुआ हूँ। वस्तुतः मैं सदैव मिथ्या अहंकार से मदोन्मत्त तथा भौतिक आनन्द के विचारों से वयाकुल रहता हूँ। द्वेष तथा घमंड मेरे आभूषण हैं।
 
 
(4) मैं निद्रा एवं आलस्य द्वारा पराजित हूँ। मैं पुण्य कार्य करने से सदा दूर रहता हूँ, परन्तु वयर्थ के कार्य करने में सदैव उत्साहित रहता हूँ। मैंने नाम एवं प्रतिष्ठा हेतु धोखाधड़ी को अंगीकार कर लिया है। मैं सदा लालच के वश में रहता हूँ तथा कामेच्छाओं से भरा हुआ हूँ।
 
 
(5) मैं इतना पापी वयक्ति हूँ कि साधु पुरुषों ने भी मेरा त्याग कर दिया है। मैं निरंतर अपराधों में रत हूँ। मैं समस्त पुण्य कर्मो से हीन हूँ तथा मेरा मन सदा अवांछित वस्तुओं में भटकता रहता है। इसी कारणवश, मैं विभिन्न दुःखों द्वारा ग्रस्त हूँ।
 
 
(6) अब मैं वृद्ध हूँ तथा मेरे पास अन्य कोई उपाय नहीं है। इसके अलावा, मैं निर्धन हूँ, मेरे पास कोई धन-संपत्ति नहीं है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं कि मैं भगवान्‌ के श्री चरणकमलों में अपना दुःख निवेदन कर रहा हूँ।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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