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आसल कथा बोल्ते  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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आसल कथा बोल्ते कि
तोमार केंथा – धरा, कपनि – आँटा – सब फाँकि॥1॥ |
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धर्मपत्नी त्यजि’ घरे, परनारी – सङ्ग करे,
अर्थ – लोभे द्वारे द्वारे फिरे, राखले कि बाकी॥2॥ |
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तुमि गुरु बोल्छो वटे, साधु – गुरु निष्कपटे,
कृष्णनाम देनो कर्ण – पुटे, से कि एमन होय मेकि?॥3॥ |
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जेबा अन्य शिक्षा देय, ता’के कि ‘गुरु’ बोल्ते हय?
दुधेर फल तो’ घोले नय, भेवे ‘चित्ते देख देखि॥4॥ |
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शम – दम – तितिक्षा – बले, उपरति, श्रद्धा ह’ले,
तबे भेक चाँद – बाउल, बोले, एन्चडे पेके हबे कि?॥5॥ |
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शब्दार्थ |
अर्थ / अनुवाद केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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