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शुनियाछि साधु मुखे बले  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
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शुनियाछि साधु मुखे बले सर्वजन
श्रीरूप कृपाय मिले युगल चरण॥1॥ |
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हा! हा! प्रभु सनातन गौर परिवार
सबे मिलि’ वांच्छा पूर्ण करह आमार॥2॥ |
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श्रीरूपेर कृपा येन आमार प्रति हय
से पद आश्रय यार सेर्इ महाशय॥3॥ |
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प्रभु लोकनाथ कबे संगे लइया याबे
श्रीरूपेर पादपद्मे मोरे समर्पिबे॥4॥ |
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हेन कि हइबे मोर – नर्म सखीगणे
अनुगत नरोत्तमे करिबे शासने॥5॥ |
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शब्दार्थ |
(1) मैंने साधुओं के श्रीमुख कमल से सुना है कि श्री रूप गोस्वामी की कृपा से ही राधा कृष्ण युगल के चरण कमलों की प्राप्ति होती है। |
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(2) हे श्रीसनातन गोस्वामी एवं श्रीमन्महाप्रभु के अन्य पार्षद वृन्द!आप सब लोग मिलकर कृपा पूर्वक मेरी अभिलाषा पूर्ण कीजिए। |
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(3) कृपया मेरी अभिलाषा पूर्ण कीजिए कि श्री रूप गोस्वामी की मुझपर भी कृपा हो जाए तथा वे मुझे अपने श्रीचरणों में आश्रय प्रदान करें। |
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(3) कृपया मेरी अभिलाषा पूर्ण कीजिए कि श्री रूप गोस्वामी की मुझपर भी कृपा हो जाए तथा मैं उनके श्रीचरणों में आश्रय ग्रहण करूँ। |
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(4) कब मेरे प्रभु, श्री लोकनाथ दास गोस्वामी, मुझे अपने साथ ले जाकर श्री रूप गोस्वामी के श्री चरणों में मुझे समर्पित कर देंगे। |
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(5) कब आपकी कृपा से श्री राधाजी की नर्मसखियाँ अपने अनुगत जानकर नरोत्तम दास पर शासन करेंगी। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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