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प्राणेश्वर निवेदन  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
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प्राणे श्वर! निवेदन एइजन करे।
गोविन्द गोकुलचन्द्र, परम आनन्दकन्द,
गोपी-कुलप्रिय देख मोरे॥1॥ |
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तुया पादपद्म-सेवा, एइ धन मोरे दिबा,
तुमि प्रभु करुणार निधि।
परम मंगल यश, श्रवणे परम रस,
कार किबा कार्य नहे सिद्धि॥2॥ |
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दारुण संसार-गति, विषयेते लुब्ध-मति,
तुया विस्मरण-शेल बुके।
जर-जर तनु मन, अचेतन अनुक्षण,
जीयन्ते मरण भेल दुःखे॥3॥ |
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मो बड़ अधम-जने, कर कृपा निरीक्षणे,
दास करि’ राख वृन्दावने।
श्रीकृष्णचैतन्य नाम, प्रभु मोर गौरधाम,
नरोत्तम लइल शरण॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे प्राणेश्वर! हे गोविंद, हे गोकुल के चन्द्र, हे दिवय आनन्द के धाम, और गोपियों के प्रिय, आप मेरी ओर आपकी कृपादृष्टि कीजिये। मेरा यह निवेदन स्वीकार करें। |
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(2) हे प्रभु! आप करुणा के सागर हैं। कृपया मुझे अपने चरणकमलों की सेवा से प्राप्त होने वाला ‘प्रेमधन’ प्रदान कीजिए। आपके यश का श्रवण परम मंगलमय तथा परम आनन्द प्रदान करने वाला है, इसके श्रवण से किसके कार्य की सिद्धि नही होती? |
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(3) यह भौतिक जीवन भयानक है और इंद्रियभोगों की आसक्ति के कारण मेरी बुद्धि विषयों में लुब्ध हो रही है। आपका विस्मरण मेरे हृदय में चुभ रहा है। मेरा शरीर और मन छिन्न-भिन्न रहा है तथा आध्यात्मिक रूप से मैं इससे अनुक्षण अचेत हो रहा हूँ। इस दुःख से मैं जीवित होकर भी मृतक के समान हूँ। |
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(4) श्रील नरोत्तमदास ठाकुर प्रार्थना करते हैं, ‘‘हे गौरहरि! श्रीकृष्ण चैतन्य! इस अधम पर अपनी कृपादृष्टि कीजिये तथा वृन्दावन में अपने सेवक के रूप में स्थान दीजिये। केवल आप ही मेरे एकमात्र शरण हैं। ’’ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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