|
|
|
हेदे हे नागरवर  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
|
|
हेदे हे नागरवर, शुन हे मुरलीधर,
निवेदन करि तुया पाय।
चरण-नखर-मणि, येन चाँदेर गाँथनि,
भाल शोभे आमार गलाय॥1॥ |
|
|
श्रीदाम-सुदाम-सङ्गे यखन बने याओ रङ्गे,
तखन आमि दुयारे दांडाये।
मने करि सङ्गे याइ, गुरुजनार भय पाइ,
आँखी रइल तुया पाने चेये॥2॥ |
|
|
चाइ नवीन मेघ पाने, तुया बन्धू पड़े मने,
एलाइले केश नाहि बाँन्धि।
रन्धन-शालाते याइ, तुया बन्धु गुण गाइ,
धूँयार छलना करि’ कान्दि॥3॥ |
|
|
मणि नओ, माणिक नओ, आँचले बाँधिले रओ,
फुल नओ ये केशे करिवेशे।
नारी ना करित विधि, तुया हेन गुणनिधि,
लइया फिरिताम देशे देशे॥4॥ |
|
|
अगुरु चन्दन हइताम, तुया अङ्गे माखा रइताम,
धामिया पड़िताम राङ्गा पाय।
कि मोर मनेर साध, वामन ह’ये चाँद हात,
विधि कि साध पूराबे आमार॥5॥ |
|
|
नरोत्तमदास कय, शुन ओहे दयामय,
तुमि आमाय ना छाड़िह दया।
ये-दिन तोमार भावे, आमार ए देह याबे,
सेइ दिन दिओ पदछाया॥6॥ |
|
|
शब्दार्थ |
(1) हे मेरे प्रिय नायक! हे स्वामी, वंशीवादक! कृपया अपने चरणकमलों में मेरा निवेदन सुनिए! आपके मणि-रूपी नख ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो अनेकों चन्द्रमाओं को हार रूप में गूँथा गया हो तथा यह हार मेरे गले की शोभा बढ़ा रहा है। |
|
|
(2) जब आप श्रीदाम तथा सुदाम के संग वन में जाते हो, तब मैं घर की देहरी पर खड़ी आपके संग चलने को सोचती रहती हूँ। परन्तु मुझे वरिष्ठों एवं पूजनीय-जन का भय रहता है। अतएव, मेरे नेत्र आपको टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। |
|
|
(3) जब भी मैं नवीन-मेघ के दर्शन करती हूँ तो हे मेरे मित्र, मुझे तत्क्षण आपका स्मरण होता है तथा मैं अपने बँधे केश खोल देती हूँ। रसोईघर में कार्य करते समय में आपका गुणगान तथा धूँए के बहाने क्र्रन्दन करती रहती हूँ। |
|
|
(4) हे प्रिय स्वामी! आप न तो मणि एवं न ही माणिक हैं कि मैं आपको अपने आँचल से बाँध कर रखूँ। न ही आप पुष्प हैं, जो मेरे केश-समूह पर सुसज्जित रहे। हे गुणनिधान! यदि मैं स्त्री न होती तो मैं आपको स्थान-स्थान साथ ले भ्रमण करती। |
|
|
(5) यदि मैं अगरु या चन्दन होती तो मैं आपके श्री अंगों पर लेपित रहती, तथा जब आपको पसीना आता तो में आपके लालिमायुक्त चरणकमलों पर गिर जाती। मेरी क्या मनोकामनाएँ हैं? यद्यपि मैं एक वामन (बौना) हूँ, तथापि मैं चन्द्रमा का स्पर्श करना चाहती हूँ। क्या विधि मेरी इस इच्छा को कभी पूर्ण करेगी? |
|
|
(6) श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं ‘‘हे दयानिधान स्वामी, कृपया सुनिए, तथा मेरी उपेक्षा न करें। जिस दिन मैं आपके विचारों में निमग्न अपनी देह त्याग दूँ, कृपया उस दिन से मुझे अपने चरणकमलों के आश्रय में रखें। ’’ |
|
|
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
|
|
|