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एइ बार करुणा करो  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
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एइ बार करुणा करो वैष्णव-गोसाईं।
पतितपावन तोमा बिने कह नाइ॥1॥ |
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याँहार निकटे गेले पाप दूरे याय़।
एमन दय़ाल प्रभु केबा कोथा पाय?॥2॥ |
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गंगार परश हइले पश्चाते पावन।
दर्शने पवित्र कर-एइ तोमार गुण॥3॥ |
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हरिस्थाने अपराध तारे हरिनाम।
तोमा-स्थाने अपराधे नाहि परित्राण॥4॥ |
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तोमार हृदये सदा गोविन्द-विश्राम।
गोविन्द कहेन- मम वैष्णव-पराण॥5॥ |
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प्रति जन्मे करि आशा चरणेर धूलि।
नरोत्तम कर दया आपनार बलि॥6॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे वैष्णव गोसाँई! कृपया मुझ पर इस बार करुणा करो। आपके बिना पतित जीवों को पावन करनेवाला और कौन है? |
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(2) ऐसा परम दयालु कोई कहाँ प्राप्त कर सकेगा, जिसके निकट जाने मात्र से पाप दूर चले जाते हैं? |
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(3) गंगाजल में अनेकों बार स्नान करने के बाद ही कोई शुद्ध हो पाता है, किन्तु आपके तो केवल दर्शन करने मात्र से पतित जीवात्माएँ पवित्र जो जाती हैं। यही आपका महान गुण हैं। |
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(4) भगवान् श्रीहरि के प्रति किए गए अपराधों से मुक्ति हरिनाम के द्वारा मिलती है, किन्तु यदि कोई आपके चरणों में अपराध करे, तो उस अपराध से कदापि ही निस्तार संभव नहीं। |
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(5) आपके हृदय में भगवान् गोविन्द सदैव विराजमान होते हैं, और भगवान् गोविन्द कहते हैं, ‘‘वैष्णवगण मेरे प्राण हैं। ’’ |
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(6) अतः मैं जन्मजन्मान्तरों में आपकी चरण-धूलि की कामना करता हूँ। कृपया नरोत्तमदास को अपना समझकर कृपा कीजिए। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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