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श्रीरूपमञ्जरी-पद  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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श्रीरूपमञ्जरी-पद, सेइ मोर सम्पद,
सेइ मोर भजन-पूजन।
सेइ मोर प्राण-धन, सेइ मोर आभरण,
सेइ मोर जीवनेर जीवन॥1॥ |
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सेइ मोर रसनिधि, सेइ मोर वांछासिद्धि,
सेइ मोर वेदेर-धरम।
सेइ व्रत, सेइ तप, सेइ मोर मन्त्र-जप,
सेइ मोर धरम-करम॥2॥ |
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अनुकूल ह’बे विधि, सेइ पदे हइबे सिद्धि,
निरखिब ए दुइ नयने।
से रूपमाधुरी राशी, प्राण-कुवलय-शशी,
प्रफुल्लित ह’बे निशि दिने॥3॥ |
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तुया-अदर्शन-अहि, गरले जारल देहि,
चिर-दिन तापित जीवन।
हा हा प्रभु! कर दया, देह मोरे पदछाया,
नरोत्तम लइल शरण॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) श्रीरूपमञ्जरीके चरणकमल ही मेरी वास्तविक संपदा हैं। उनकी सेवा ही मेरा भजन-पूजन है। वे ही मेरे प्राणधन, मेरे आभूषण, एवं वे ही मेरे जीवनके भी जीवनस्वरूप हैं। |
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(2) वे ही मेरे रसनिधि हैं, तथा मेरी इच्छाओं की सिद्धि हैं। वे ही मेरे लिए वेदों के धर्मस्वरूप हैं। उनकी सेवा ही मेरे लिए व्रत, मंत्र-जप, तथा धर्म-कर्म है। |
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(3) मेरा सौभाग्य उदित होने पर उनके चरणकमलों में मेरी सिद्धि होगी तथा मैं अपने दोनों नेत्रों से उनका दर्शन करूँगा। उनकी रूपमाधुरी का दर्शन कर जिस प्रकार चन्द्रमा के उदित होते ही नीलकमल प्रफुल्लित हो जाता है, उसी प्रकार मैं भी दिन-रात प्रफुल्लित अर्थात् आनन्दित होता रहूँगा। |
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(4) श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं, ‘‘हे श्रीरूपगोस्वामी! आपके विरह रूपी सर्पके विष से मेरा शरीर जर्जरित हो रहा है, जिससे मेरे प्राण चिरकाल से वयाकुल हो रहे हैं, अतः आप मुझे कृपा करके अपनी चरणछाया में रखिए। मैं आपकी शरण में आया हूँ। ’’ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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