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काण्ड 7 - दोहा 8a  |
कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ॥8 क॥ |
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अनुवाद |
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तब उन्होंने कौसल्याजी के चरणों में सिर नवाया। कौसल्याजी ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया (और कहा-) तुम मुझे रघुनाथजी के समान प्रिय हो। |
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Then they bowed their heads at the feet of Kausalyaji. Kausalyaji was happy and blessed them (and said-) You are as dear to me as Raghunath. |
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