श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 66a.3
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 66a.3 
दसकंधर मारीच बतकही। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही॥
पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना॥3॥
 
अनुवाद
 
 उन्होंने रावण और मारीच के बीच हुए संवाद का भी वर्णन किया, फिर माया सीता के हरण और श्री रघुवीर के वियोग का वर्णन किया।
 
He also narrated the conversation between Ravana and Marich. Then he described the abduction of Maya Sita and the separation of Shri Raghuveer.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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