श्री रामचरितमानस » काण्ड 7: उत्तर काण्ड » चौपाई 45.2 |
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| | काण्ड 7 - चौपाई 45.2  | ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका॥
करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ॥2॥ | | अनुवाद | | ज्ञान दुर्गम (कठिन) है और उसकी प्राप्ति में अनेक बाधाएँ हैं। उसके साधन कठिन हैं और उसमें मन का सहारा नहीं है। यदि कोई बहुत प्रयत्न करने पर उसे प्राप्त भी कर ले, तो वह भी मुझे प्रिय नहीं है, क्योंकि वह भक्ति से रहित है। | | Knowledge is inaccessible (difficult) and there are many obstacles in its attainment. Its means are difficult and there is no support for the mind in it. Even if someone attains it after much effort, it is also not dear to me because it is devoid of devotion. |
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