श्री रामचरितमानस » काण्ड 7: उत्तर काण्ड » चौपाई 31.2 |
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| | काण्ड 7 - चौपाई 31.2  | जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी॥
अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने॥2॥ ` | | अनुवाद | | जो लोग दुःखी थे, उनसे मैं कहता हूँ कि (सर्वत्र प्रकाश फैलने से) सबसे पहले अज्ञान की रात्रि नष्ट हो गई। पाप के उल्लू सर्वत्र छिप गए और काम-क्रोध के कुमुदिनी पुष्प बंद हो गए। | | To all those who were grieved, I tell them that (with the spread of light everywhere) first the night of ignorance was destroyed. The owls of sin hid everywhere and the lilies of lust and anger closed. |
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