श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 30.5
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 30.5 
बहु बासना मसक हिम रासिहि। सदा एकरस अज अबिनासिहि॥
मुनि रंजन भंजन महि भारहि। तुलसिदास के प्रभुहि उदारहि॥5॥
 
अनुवाद
 
 उन हिमरूपी श्री रामजी को भजो जो अनेक कामनाओं रूपी मच्छरों का नाश करते हैं। उन श्री रघुनाथजी को भजो जो सदैव एकरस, अजन्मा और अविनाशी हैं। उन श्री रामजी को भजो जो मुनियों को आनन्द प्रदान करते हैं, पृथ्वी का भार हरते हैं और तुलसीदास के उदार (दयालु) स्वामी हैं।
 
Worship Shri Ram in the form of snow which destroys mosquitoes in the form of many desires. Worship Shri Raghunathji who is always consistent, unborn and indestructible. Worship Shri Ramji who gives joy to sages, relieves the burden of the earth and is the generous (merciful) master of Tulsidas.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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