श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 20.1
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 20.1 
पुनि कृपाल लियो बोलि निषादा। दीन्हे भूषन बसन प्रसादा॥
जाहु भवन मम सुमिरन करेहू। मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू॥1॥
 
अनुवाद
 
 तब दयालु श्री राम ने निषादराज को बुलाकर उसे प्रसाद के रूप में आभूषण और वस्त्र दिए (फिर कहा-) अब तुम भी घर जाओ, वहाँ मेरा स्मरण करते रहना और मन, वचन और कर्म से धर्म का पालन करना॥
 
Then the merciful Shri Ram called Nishadraja and gave him ornaments and clothes as Prasad (then said-) Now you too go home, keep remembering me there and follow the Dharma in your thoughts, words and deeds.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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