श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 18a.2
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 18a.2 
असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी॥
मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता॥2॥
 
अनुवाद
 
 अतः हे भक्तों के हितकारी! अपने शरणागत न होने के व्रत को स्मरण करके, मेरा परित्याग न करें। आप ही मेरे स्वामी, गुरु, पिता और माता हैं। मैं आपके चरणकमलों को छोड़कर कहाँ जा सकता हूँ?
 
Therefore, O benefactor of the devotees! Remembering your vow of not being sheltered, do not abandon me. You are my master, teacher, father and mother. Where can I go leaving your lotus feet?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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