श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 15.1
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 15.1 
सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी॥
महाराज कर सुभ अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका॥1॥
 
अनुवाद
 
 हे गरुड़जी! इस पवित्र करने वाली, तीनों प्रकार के दुःखों (दैहिक, दैविक, भौतिक) तथा जन्म-मृत्यु के भय को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करो। महाराज श्री रामचंद्रजी के मंगलमय राज्याभिषेक की कथा को (बिना किसी स्वार्थ के) सुनने से मनुष्य वैराग्य और ज्ञान को प्राप्त करते हैं।
 
O Garudaji! Listen to this story which purifies (everyone), it destroys all the three types of sufferings (physical, divine, material) and the fear of birth and death. By listening to the story of the auspicious coronation of Maharaj Shri Ramchandraji (without any selfish motive), people attain detachment and knowledge.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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