श्री रामचरितमानस » काण्ड 7: उत्तर काण्ड » चौपाई 121a.13 |
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| | काण्ड 7 - चौपाई 121a.13  | सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ते प्रानी॥
होहिं उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत॥13॥ | | अनुवाद | | जो अभिमानी प्राणी देवताओं और वेदों की निन्दा करते हैं, वे रौरव नरक में पड़ते हैं। जो संतों की निन्दा करते हैं, वे उल्लुओं के समान हैं, जिन्हें मोहरूपी रात्रि प्रिय है और जिनका ज्ञानरूपी सूर्य अस्त हो गया है। | | Those arrogant beings who criticize the gods and the Vedas fall into the hell of Raurava. Those who criticize the saints are like owls who love the night of delusion and for whom the sun of knowledge has passed (has set). |
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