श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 112a.5
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 112a.5 
हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥
अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥
 
अनुवाद
 
 हे भाई! क्या संसार में इसके समान कोई और हानि है कि मनुष्य शरीर पाकर भी श्री रामजी का भजन न किया जाए? क्या चुगली के समान कोई दूसरा पाप है? और हे गरुड़जी! क्या दया के समान कोई दूसरा पुण्य है?
 
O brother! Is there any other harm in the world like this that one should not worship Shri Ramji even after getting a human body? Is there any other sin like backbiting? And O Garudaji! Is there any other virtue like kindness?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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