श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 111a.8
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 111a.8 
सुनु प्रभु बहुत अवग्या किएँ। उपज क्रोध ग्यानिन्ह के हिएँ॥
अति संघरषन जौं कर कोई। अनल प्रगट चंदन ते होई॥8॥
 
अनुवाद
 
 हे प्रभु! सुनिए, बहुत अपमान होने पर बुद्धिमान व्यक्ति के हृदय में भी क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति चंदन को बहुत घिसे, तो उसमें से अग्नि निकल आएगी।
 
O Lord! Listen, anger arises in the heart of even a wise man when he is insulted a lot. If someone rubs sandalwood a lot, fire will emerge from it.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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