श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  चौपाई 111a.4
 
 
काण्ड 7 - चौपाई 111a.4 
बिबिधि भाँति मोहि मुनि समुझावा। निर्गुन मत मम हृदयँ न आवा॥
पुनि मैं कहेउँ नाइ पद सीसा। सगुन उपासन कहहु मुनीसा॥4॥
 
अनुवाद
 
 मुनि ने मुझे अनेक प्रकार से समझाया, परन्तु निर्गुण दर्शन मेरे हृदय में नहीं बैठा। मैंने मुनि के चरणों में शीश नवाकर कहा- हे मुनीश्वर! मुझे सगुण ब्रह्म की उपासना बताइए।
 
The sage explained to me in many ways, but the Nirgun philosophy did not settle in my heart. I bowed my head at the sage's feet and said- O Munishwar! Tell me the worship of Sagun Brahma.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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