श्री रामचरितमानस » काण्ड 7: उत्तर काण्ड » चौपाई 100a.5 |
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| | काण्ड 7 - चौपाई 100a.5  | सूद्र करहिं जप तप ब्रत नाना। बैठि बरासन कहहिं पुराना॥
सब नर कल्पित करहिं अचारा। जाइ न बरनि अनीति अपारा॥5॥। | | अनुवाद | | शूद्र नाना प्रकार के जप, तप और व्रत करते हैं तथा ऊँचे आसन (व्यास गद्दी) पर बैठकर पुराणों का पाठ करते हैं। सभी मनुष्य मनमाना आचरण करते हैं। यह अपार अन्याय वर्णन से परे है। | | Shudras do various types of chanting, penance and fasting and recite Puranas while sitting on a high seat (Vyas Gaddi). All men behave arbitrarily. The immense injustice cannot be described. |
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